कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द होने के बाद पूरे देश में हंगामा मचा हुआ है। राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने पर सभी देशों से भी प्रतिक्रिया आ रही है। इस मामले में अमेरिका के बाद जर्मनी ने बुधवार को कहा कि मानहानि के एक मामले में सजा फिर लोकसभा में अयोग्य ठहराए जाने के बाद विपक्षी नेता राहुल गांधी के मामले में न्यायिक स्वतंत्रता और मौलिक लोकतांत्रिक सिद्धांतों के मानकों को लागू होना चाहिए।
जर्मनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने मीडिया से बात करते हुए कहा जानकारी के अनुसार राहुल गांधी के दोषी पाए जाने के बाद उनके पास अभी भी हायर कोर्ट्स में अपील करने का विकल्प मौजूद है। जर्मनी प्रवक्ता ने आगे कहा हमें भरोसा है कि राहुल गांधी पर कार्रवाई करते समय या कि उनके पक्ष को सुनते समय न्यायिक स्वतंत्रता और राहुल गांधी के मौलिक अधिकारों का ध्यान रखा जाएगा।बता दें कि जर्मनी के विदेश मंत्रालय के बयान के बाद अभी तक भारत के विदेश मंत्रालय की तरफ से इस बात पर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।
आखिर क्यों राहुल गांधी सांसद नहीं रहे
गुजरात के सूरत जिले की अदालत ने राहुल गांधी की कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान मोदी सरनेम को लेकर दिए गए एक बयान को लेकर कांग्रेस नेता के खिलाफ 2019 में आपराधिक मानहानि के मामले में 23 मार्च 2023 को दोषी ठहराया गया था। और राहुल गांधी को दो साल जेल की सजा सुनाई गई थी। इसके अगले ही दिन 24 मार्च 2023 को लोकप्रतिनिधित्व कानून के कारण लोकसभा से उनकी संसद सदस्यता रद्द कर दी गई थी।
यूरोपीय देश की पहली प्रतिक्रिया
मीडिया रिपोर्ट से मिली जानकारी मुताबिक जर्मनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि स्वतंत्रता के मानक और मौलिक लोकतांत्रिक सिद्धांत राहुल गांधी के खिलाफ कार्यवाही पर समान रूप से लागू होंगे। जानकारी के अनुसार राहुल गांधी के मामले में जर्मनी या किसी अन्य यूरोपीय देश की यह पहली प्रतिक्रिया थी। भारतीय अधिकारियों की ओर से फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
राहुल सदस्यता रद्द होने के मामले पर अमेरिका की नजर
अमेरिकी विदेश विभाग के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने कहा था कि अमेरिका भारतीय अदालतों में राहुल गांधी के मामले पर नजर रख रहा है। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूछे जाने पर कि क्या राहुल गांधी का संसद से निष्कासन लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप था, वेदांत पटेल ने जवाब दिया था कि कानून के शासन और न्यायिक स्वतंत्रता का सम्मान किसी भी लोकतंत्र की आधारशिला है।