Karnataka Election 2023: किन वजहों से BJP को करना पड़ा हार का सामना?

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव जिसमें बीजेपी ने अपनी जी जान लगा दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक चुनाव के लिए 19 रैली कि और मतदान के एक दिन पहले विडियो भी जारी किया। इसके बावजूद भी बीजेपी हारती हुई दिखाई दे रही है चुनाव नतीजे काफी हद तक साफ हो चुके हैं।

हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में भी भाजपा को बड़ा झटका लगा है। पिछले एक साल के अंदर ये दूसरा राज्य है, जिसकी सत्ता भाजपा के हाथ से कांग्रेस ने छीन ली। इसका बड़ा सियाासी मतलब निकाला जा रहा है। खासतौर पर भाजपा के लिए बड़ी चिंता की बात है।

बता दें कि कर्नाटक के बाद पांच अन्य राज्यों में चुनाव होने हैं। इनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम और तेलंगाना शामिल है। साथ ही 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव के बाद सात राज्यों में चुनाव होने हैं। कुल मिलाकर अगले दो सालों में लोकसभा के साथ-साथ 13 बड़े राज्यों के चुनाव होने हैं। इनमें कई दक्षिण के राज्य भी हैं। इसलिए भाजपा के लिए कर्नाटक की हार को बड़ा झटका माना जा रहा है। वहीं, मुश्किलों में घिरी कांग्रेस के लिए जीवनदान साबित हुई।

क्यों हारी भाजपा?

राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार विधानसभा चुनाव के दौरान ही कर्नाटक चुनाव की तस्वीर काफी हद तक साफ हो गई थी। इस बार चुनाव में भाजपा बैकफुट पर नजर आ रही थी और कांग्रेस काफी आक्रामक थी। विश्लेषको द्वारा कहा गया कि भाजपा की हार के पांच बड़े कारण

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1. आंतरिक कलह : आंतरिक कलह सबसे बड़ा कारण है। चुनाव के दौरान ही नहीं, बल्कि इससे काफी पहले से भाजपा में आंतरिक कलह की खबरें सामने आ चुकी थीं। कर्नाटक भाजपा में कई धड़े बन चुके थे। एक मुख्यमंत्री पद से हटाए गए बीएस येदियुरप्पा का गुट था, दूसरा मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई का, तीसरा भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष और चौथा भाजपा प्रदेश नलिन कुमार कटील का था। एक पांचवा फ्रंट भी था, जो पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि का था। इन सभी फ्रंट में भाजपा के कार्यकर्ता पिस रहे थे। सभी के अंदर पॉवर गेम की लड़ाई चल रही थी।

2. टिकट बंटवारा : पार्टी पहले ही आंतरिक कलह से जूझ रही थी। ऐसे समय में टिकट बंटवारे को लेकर भी बड़ी गड़बड़ी हुई। पार्टी कई दिग्गज नेताओं का टिकट काटना भाजपा को भारी पड़ा। पार्टी नेताओं की बगावत ने भी कई सीटों पर भाजपा को नुकसान पहुंचाया है। करीब 15 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं, जहां भाजपा के बागी नेताओं ने चुनाव लड़ा। जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी जैसे नेताओं का अलग होना भी पार्टी के लिए नुकसान साबित हुआ।

3. भ्रष्टाचार के आरोप : कर्नाटक विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले ही भाजपा के एक विधायक के बेटे को रंगे हाथों घूस लेते हुए पकड़ा गया था। इसके चलते भाजपा विधायक को भी जेल जाना पड़ा। एक ठेकेदार ने भाजपा सरकार पर 40 प्रतिशत कमिशनखोरी का आरोप लगाते हुए फांसी लगा ली थी। कांग्रेस ने इस मुद्दे को पूरे चुनाव में जोरशोर से उठाया।

4. दक्षिण बनाम उत्तर की लड़ाई : इसे भी एक बड़ा कारण ये भी मान सकते हैं। इस वक्त दक्षिण बनाम उत्तर की बड़ी लड़ाई चल रही है। भाजपा राष्ट्रीय पार्टी है और मौजूदा समय केंद्र की सत्ता में है। ऐसे में भाजपा नेताओं ने हिंदी बनाम कन्नड़ की लड़ाई में मौन रखना ठीक समझा। वहीं, कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने मुखर होकर इस मुद्दे को कर्नाटक में उठाया।

नंदिनी दूध का मसला इसका उदाहरण है। कांग्रेस ने नंदिनी दूध के मुद्दे को खूब प्रचारित किया। एक तरह से ये साबित करने की कोशिश की है कि भाजपा उत्तर भारतीय कंपनियों को बढ़ावा दे रही है, जबकि दक्षिण के लोगों को किनारे लगाया जा रहा है।

5. आरक्षण का मुद्दा : कर्नाटक चुनाव में भाजपा ने चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण खत्म करके लिंगायत और अन्य वर्ग में बांट दिया। पार्टी को इससे फायदे की उम्मीद थी, लेकिन कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 फीसदी करने का एलान कर दिया। इसने भाजपा के हिंदुत्व को पीछे छोड़ दिया। आरक्षण के वादे ने कांग्रेस को बड़ा फायदा पहुंचाया। लिंगायत वोटर्स से लेकर ओबीसी और दलित वोटर्स तक ने कांग्रेस का साथ दिया।

 

 

 

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