आर बी आई मोनेटरी पॉलिसी :- देश का सबसे बड़ा बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक जिसके अंतर्गत सरकारी व गैर-सरकारी बैंक कार्यरत है।
आरबीआई यानि भारतीय रिज़र्व बैंक देश का सबसे बडा केंद्रीय बैंक है, और इसे बैंकर का बैंक के रूप में जाना जाता है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने 1 अप्रैल, 1935 को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के तहत अपना परिचालन शुरू किया था । भारत में वित्तीय स्थिरता बनाने के लिए ही मौद्रिक नीतियों को लागू करने के लिए मौद्रिक स्थिरता को भी सुनिश्चित करने के लिए आरबीआई की स्थापना की गई थी।
भारतीय रिज़र्व बैंक
आर बी आई मोनेटरी पॉलिसी इसके कार्यों में भारत की मुद्रा और क्रेडिट सिस्टम,का मौद्रिक प्रबंधन,और सरकारी ऋण प्रबंधन, विदेशी मुद्रा और भंडार प्रबंधन, वित्तीय विनियमन और पर्यवेक्षण को विनियमित करना शामिल किया गया है, और यह बैंकों और सरकार के लिए बैंकर के रूप में कार्य करता है।
आरबीआई ने शुरू से विभिन्न क्षेत्रों, विशेषकर ग्रामीण और कृषि क्षेत्रों के विकास के लिए सक्रिय भूमिका निभाई है। इन वर्षों में, ये कार्य वैश्विक और राष्ट्रीय विकास के साथ विकसित हुए हैं।
आर बी आई मोनेटरी पॉलिसी
रिजर्व बैंक के संचालन का उदेश्य और इसके कार्यों की बहुमुखी प्रकृति के बारे में बुनियादी विवरण प्रदान करना आरबीआई को रहस्योद्घाटन करना है। आज के समय में ही, आरबीआई कई अन्य चीजों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिसमें मूल्य और वित्तीय स्थिरता बनाए रखता है,
भारत के भीतर अच्छे मुद्रा नोटों की आपूर्ति का प्रबंधन करना, अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों में ऋण प्रवाह सुनिश्चित करता है और विकास में अग्रणी भूमिका निभाता है और पर्यवेक्षण करना भी शामिल है। वित्तीय बाजारों और संस्थानों में करता है। रिजर्व बैंक के फैसले पर सभी भारतीयों के दैनिक जीवन को प्रभावित करता हैं और भारत के आर्थिक और वित्तीय पाठ्यक्रम की योजनाए बनाने में मदद करते हैं।
आरबीआई विभिन्न तरीकें
भारत में मुंबई के मुख्यालय में, भारतीय रिज़र्व बैंक यानि आर बी आई मोनेटरी पॉलिस विभिन्न तरीकों से वह वित्तीय बाजार की सेवा करता है। उदाहरण के लिए हम, बैंक के ओवरनाइट इंटरबैंक लेंडिंग रेट निर्धारित करता है, जो मुंबई इंटरबैंक ऑफर रेट (एमआईबीओआर) के रूप में भी जाना जाता है और यह भारत में ब्याज की दर से संबंधित वित्तीय साधनों के लिए एक बेंचमार्क के रूप में ही कार्य करता है।
आर बी आई मोनेटरी पॉलिसी
भारतीय रिज़र्व बैंक यानि आरबीआई की उत्पत्ति का पता 1926 में ही लगाया जा सकता है, जब हिल्टन-यंग कमीशन ने, जिसे भारतीय मुद्रा और वित्त पर रॉयल कमीशन के रूप में जानते है, भारत के लिए मुद्रा और क्रेडिट के नियंत्रण को अलग-अलग करने के लिए एक केंद्रीय बैंक बनाने का आग्रह किया गया सरकार और पूरे देश में बैंकिंग की सुविधाओं का विस्तार होने लगा। इसलिए, यह 1934 का भारतीय रिज़र्व बैंक का अधिनियम था,और इसके ही कारण रिजर्व बैंक की स्थापना हुई और विभिन्न कार्यों को गति प्रदान की गई।
जिसके कारण 1935 में परिचालन शुरू हुआ। तब से,भारतीय रिज़र्व बैंक यानि आरबीआई के कार्यों और भूमिकाओं में कई बदलाव हुए हैं। भारतीय वित्तीय क्षेत्रों में और अर्थव्यवस्था की प्रकृति बदल दी गई है।
एक निजी शेयरधारकों के बैंक के रूप में शुरुआत करते हुए, 1949 में आरबीआई का राष्ट्रीयकरण किया गया था, और फिर इसने एक नए स्वतंत्र राष्ट्र और उसके लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने की जिम्मेदारी संभाली ली। आरबीआई के राष्ट्रीयकरण से सरकार और केंद्रीय बैंक की नीतियों के बीच में समन्वय प्राप्त करने का प्रयास किया।
भारतीय रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति
आर बी आई मोनेटरी पॉलिसी एक ऐसी नीति है जिसके माध्यम से किसी देश का मौद्रिक प्राधिकरण और खासकर उस देश का सेंट्रल बैंक जो उस देश की अर्थव्यवस्था के अन्दर ब्याज़ की दरों को नियंत्रण के माध्यम से मुद्रा की पूर्ति को नियमित और नियंत्रित करता है,
ताकि वो वस्तुओं के दामों को बढ़ोत्तरी से बचा जा सके और अर्थव्यवस्था को विकास की तरफ अग्रसर करे,हालांकि भारतीय रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य मुद्रा की आपूर्ति को नियंत्रित करना है।और प्रायः कीमत में स्थिरता और आर्थिक वृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए मुद्रास्फीति दर या ब्याज की दर को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति का प्रयोग किया जाता है।
आर बी आई मोनेटरी पॉलिसी द्वारा केंद्रीय बैंक, करेंसी बोर्ड या देश के अन्य सक्षम मौद्रिक प्राधिकरण जो कि अर्थव्यवस्था में धन की मात्रा को नियंत्रित करता हैं और ऐसे ही माध्यम जिनके द्वारा नए धन की आपूर्ति किया जाता है,
भारतीय रिज़र्व बैंक के मोनेटरी पॉलिसी द्वारा बनाई गई कार्य योजनाओं की ड्राफ्टिंग, घोषणा और कार्यान्वयन की प्रक्रिया को मोनेटरी पॉलिसी में मनी सप्लाई और ब्याज दरों का प्रबंधन शामिल किया जाता है जिसका लक्ष्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना होता है, उपभोग, विकास और लिक्विडिटी जैसे वृहद आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति करना है।
ब्याज की दरों में संशोधन
इसे ब्याज दरों में संशोधित करने और सरकारी बॉन्डों की खरीद या बिक्री करने हेतु, विदेशी मुद्रा विनिमय दरों को रेगुलेट करने के लिए और बैंकों द्वारा रिजर्व के रूप में रखे जाने वाली राशि को परिवर्तित करने में जैसे कदमों द्वारा अर्जित किया जाता है।
दुनिया भर के अर्थशास्त्री, जो विश्लेषक, निवेशक और वित्तीय विशेषज्ञ आकुलता से मौद्रिक नीति रिपोर्टों और मौद्रिक नीति निर्णय निर्माताओं से संबंधित बैठकों में परिणामों की प्रतीक्षा करते रहते हैं। ऐसे घटनाक्रमों का पूरा अर्थव्यवस्था और असाधारण सेक्टर या बाजारों पर दीर्घकालिक प्रभाव भी पड़ता है। मौद्रिक नीति का निर्माण कई स्रोतों से मिलें इनपुटों के आधार पर किया जाता है।
आर बी आई मोनेटरी पॉलिसी प्राधिकारियों को जीडीपी में निरंतर ज्यादा अर्जित करने के लिए, बेरोजगारी दर को निम्न स्तर पर रखने और विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखने और महंगाई दर को एक अनुमानित योग्य दायरे में बनाये रखने के लिए नीतिगत अधिदेश दिए जाते हैं।
भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास का बयान
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति पर आयी खबर के तहत-
भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि लगभग पिछले 3 साल में आए हुए विभिन्न चुनौतियों के वजह से ही दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों में मॉनेटरी पॉलिसी के स्तर पर चुनौती हो रही है. और मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी के 6 सदस्यों में से 4 ने रेपो रेट बढ़ाने के पक्ष में मतदान किया, और शक्तिकांत दास ने कहा ,
वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति अब इतनी भी कमजोर नहीं दिख रही है, महंगाई भी दिन पर दिन कम होती दिख रही है.और इसलिए कमिटी अब उदार रुख को वापस लेने पर ध्यान देने लगी है और पक्ष में है.
आर बी आई मोनेटरी पॉलिसी पर भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर का कहना है कि देश में आर्थिक गतिविधियां मजबूत हुई हैं. शहरी मांग बढ़ती दिख रही है, विशेष रूप से सर्विसेज जैसे ट्रैवल, टूरिज्म और हॉस्पिटैलिटी पर लोगों का खर्च बढ़ता दिख रहा है.शक्तिकांत दास ने कहा है कि ग्रामीणों की मांग में भी सुधार का संकेत हैं. दिसंबर माह के ट्रैक्टर और दोपहिया वाहनों के बिक्री आंकड़ों से पता चलता है.
मई 2022 से 6 बार बढ़ा चूका है रेपो रेट
हम आपको बता दें कि पिछले साल महंगाई को ऊचाई पर पहुंच जाने के बाद से केंद्रीय बैंकों ने मई 2022 से ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने का सिलसिला शुरू किया था. और मई से अबतक 6 बार ब्याज दरें बढ़ाई जा चुकी हैं. एक्सपर्टस के मुताबिक, रिटेल इनफ्लेशन रिजर्व बैंक के 6 फीसदी के युक्त स्तर से नीचे आ चुकी है.और वहीं अप्रैल से शुरू होने वाले अगले वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी की ग्रोथ सुस्त पड़ने की भी उम्मीद है.
रेपो रेट क्या है
रेपो रेट वह ब्याज का दर है, जिस पर कमर्शियल बैंक अपनी जरूरतों की पूर्ति करने के लिए केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं.और इसमें बढ़ोतरी का मतलब है कि बैंकों व वित्तीय संस्थानों से लिए जाने वाला कर्ज और भी महंगा होगा और मौजूदा लोन की मंथली किस्त यानि ईएमआई बढ़ेगी.
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